Hindi Lokvani 10th Std Digest Chapter 4 जिन ढूँढ़ा Textbook Questions and Answers
सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
(१) प्रवाह तालिका पूर्ण कीजिए :
उत्तर:
(२) उचित जोड़ियाँ मिलाइए:
उत्तर:
i – ग
ii – ख
iii – ङ
iv – क
(३) शब्दसमूह के लिए एक शब्द लिखिए :
१. कस्तूरी की खोज करने वाला
उत्तर:
मृग
२. किनारे पर बैठा रहने वाला।
उत्तर:
बसेरा
३. तीन नोकों वाला अस्त्र
उत्तर:
त्रिशूल
४. जो बलहीन है
उत्तर:
शक्तिहीन
(४) दोहों में आए सुवचन
उत्तर:
(i) दुर्बल की रक्षा करना सबल का कर्तव्य है।
(ii) जिस पर ईश्वर की कृपा हो, उसका कोई कुछ भी बुरा नहीं कर सकता।
(५) निम्नलिखित अर्थ के शब्द दोहों से ढूँढ़कर लिखिए:
१. पुत्र ……..
२. इत्र विक्रेता ……….
३. परमात्मा ……….
४. खुद ……….
उत्तर:
१. लाल
२. सुगंधि बेचने वाला
३. पीव
४. दुनिया
(६) दोहों में प्रयुक्त निम्न शब्दों के दो-दो अर्थ लिखिए :
उत्तरः
१. हिरण, एक नक्षत्र का नाम
२. कलश या घड़ा, एक राशि का नाम
३. परिक्षा फल, नतिजा
४. बच्चा, केश
(७) अपनी पसंद के किसी एक दोहे के भावार्थ से प्राप्त प्रेरणा लिखिए।
उत्तरः
दोहा : जिन ढूँढ़ा ……………. किनारे बैठ ।।
प्रेरणा: प्रस्तुत दोहे से हमें साहस जैसे महान गुण का संचय करने की प्रेरणा मिलती है। साहस में बड़ी शक्ति होती है। उसके बल पर हम पानी की गहराई तक जाकर अनमोल रत्न पा सकते हैं। साहस व्यक्ति का महत्त्वपूर्ण गुण हैं।
उपयोजित लखन
शब्दों के आधार पर कहानी लिखिए:
शैली. जल, तस्वीर, अंगूठी
उत्तरः
मेल-मिलाप
रामपुर नामक गाँव में घनश्याम नाम का एक जौहरी रहता था। वह अपने दाहिने हाथ की एक ऊँगली में सोने की एक अंगूठी पहनता था। उसे उस अंगूठी से बेहद लगाव था। अत: कभी-भी वह उसे अपनी ऊँगली से अलग नहीं करता था। वह अपने परिवार से अलग रहता था। उनके लिए अलग घर की व्यवस्था थी। वह उन्हें मिलने कभी नहीं जाता था। एक दिन जौहरी को मिलने के लिए पड़ोस के गाँव से एक व्यक्ति आया। उसके पास एक थैली थी। उस थैली में एक घोड़े की तस्वीर थी । उस तस्वीर को बाहर निकालकर उसने जौहरी से कहा, “मालिक, यह बहुत ही अद्भुत तस्वीर है।
यह मुझे साधु महाराज ने दी है। मैं इसे बेचना चाहता हूँ। जो कोई इस तस्वीर को खरीद लेगा उसका पूरा जीवन बड़े आराम से कटेगा और उसे किसी भी प्रकार की विपत्तियों का सामना नहीं करना पड़ेगा। उस व्यक्ति की बातें सुनकर जौहरी ने जिज्ञासा से पूछा, “तो फिर इसका मूल्य कितना है?” उस व्यक्ति ने बताया सिर्फ पाँच जल की बूंदे और वह भी वे बूंदें एक दूसरी से अलग होनी चाहिए यानी एक साथ मिलनी नहीं चाहिए।
यह सुनकर जौहरी हैरान रह गया। थोड़ी देर तक सोचने के बाद उसने तुरंत अपने नौकर के जरिए एक गिलास में पानी मैंगवाया। उसने एक प्लेट में पानी की बूंद गिराने की कोशिश की, पर उसके प्रयत्न निष्फल रहे क्योंकि पानी की बूंदें एक-दूसर से मिलने लगी। कई बार कोशिश करने के बाद जौहरी थक गया। वह व्यक्ति मन ही मन हँस रहा था। हैरान होकर जौहरी ने उसकी ओर देखा।
तब तपाक से उस व्यक्ति ने कहा, “एक-दूसरे के साथ मिलना तो बूंदों का स्वभाव है। फिर इंसान होकर तुम क्यों अपने परिवार वालों से अलग रहते हो?” उस आदमी की बातें सुनकर जौहरी की आँखें खुल गई और वह तुरंत अपने परिवार वालों के पास चला गया। सीख : हमें जीवन में मेल-मिलाप से रहना चाहिए।
Hindi Lokvani 10th Std Textbook Solutions Chapter 4 जिन ढूँढ़ा Additional Important Questions and Answers
निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति अ (१): आकलन कृति
कृति पूर्ण कीजिए।
Question 1.
Answer:
समझकर लिखिए।
Question 1.
बड़ा व्यक्ति वही कहलाता है
Answer:
जिसके बड़े होने से दूसरों का भला होता है।
Question 2.
संसार में उन्हीं गुरु शिष्य को लोग याद करते हैं
Answer:
जो शिष्य अपने गुरु पर सर्वस्व अर्पण करने के लिए तैयार रहता है और जो गुरु अपने शिष्य से कुछ भी नहीं लेता है।
कृति अ (२) : शब्द संपदा
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ पद्यांश में से ढूँढ़कर लिखिए।
- राहगीर
- छाया
- संगत
- इत्र विक्रेता
Answer:
- राहगीर – पंथी
- छाया – छाँव
- संगत – संगति
- इत्र विक्रेता – गंधी
विलोम शब्द लिखिए।
- बड़ा x …….
- छाया x ……
- साधु x …….
Answer:
- बड़ा x छोटा
- छाया x धूप
- साधु x असाधु
निम्नलिखित शब्द के अनेकार्थी शब्द लिखिए।
- छाया
- गुरु
Answer:
- परछाई, बाधा
- अध्यापक, बड़ा
निम्नलिखित शब्द का लिंग बदलिए।
- साधु
- शिष्य
Answer:
- साध्वी
- शिष्या
Question 1.
निम्नलिखित पद्यांश में से तत्सम शब्द पहचानकर लिखिए।
Answer:
साधु
गुरु
निम्नलिखित अनेक शब्दों के लिए एक शब्द लिखिए।
Question 1.
गुरु से शिक्षा प्राप्त करने वाला
Answer:
शिष्य
कृति अ (३) : स्वमत अभिव्यक्ति
Question 1.
‘छात्र जीवन में सत्संगति का असाधारण महत्त्व होता है।’ अपने विचार लिखिए।
Answer:
सत्संगति का अर्थ है – अच्छी संगति। अच्छे मनुष्यों के साथ रहने से हम सद्गति की ओर अग्रसर होते हैं। सत्संगति के संसर्ग से मनुष्य सदाचरण का पालन करता है। विद्यार्थियों को हमेशा अच्छे संस्कार वाले छात्रों की संगति में रहना चाहिए। सत्संगति हमें जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति प्रदान करती है। सत्संगति में रहकर हम चरित्रवान बन सकते हैं। हमें जीवन में किसी से दोस्ती करते समय यह नहीं सोचना चाहिए कि वह गरीब है या अमीर । हमें दूसरे व्यक्ति के संस्कार एवं उसकी अच्छाइयों को ध्यान में रखते हुए उससे दोस्ती करनी चाहिए। सत्संगति में रहने से हम जीवन में कभी
भी गलत रास्ते पर नहीं जा सकते हैं।
निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति आ (१): आकलन कृति
Question 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए।
कमजोर व्यक्ति को सताने से –
(अ) उन्हें बुरा लगता है।
(आ) उनकी हाय लगती है।
(इ) उनकी पीड़ा और बढ़ जाती है।
Answer:
कमजोर व्यक्ति को सताने से उनकी हाय लगती है।
समझकर लिखिए।
Question 1.
यह निर्जीव है
Answer:
लुहार की धौंकनी।
Question 2.
धौंकनी से यह निकलती है
Answer:
हवा रूपी श्वास
Question 3.
पद्यांश में प्रयुक्त एक धातु का नाम
Answer:
लोहा
उचित जोड़ियाँ मिलाइए।।
Question 1.
Answer:
i – ग
ii – घ
iii – क
iv – ख
कृति पूर्ण कीजिए।
Question 1.
Answer:
उपसर्ग व प्रत्यय लगाकर शब्द लिखिए।
Question 1.
बल
Answer:
उपसर्ग – दुर्बल, प्रत्यय – बलवान
Question 2.
जीव
Answer:
उपसर्ग – सजीव, प्रत्यय – जीवधारी
विलोम शब्द लिखिए।
- दुर्बल x ………..
- बाहर x ………
Answer:
- दुर्बल x सबल
- बाहर x अंदर
लिंग बदलिए।
- कुम्हार
- गुरु
Answer:
- कुम्हारिन
- गुरुआइन
पर्यायवाची शब्द लिखिए।
- साईं
- अंतर
- बैरी
- खोट
Answer:
- ईश्वर
- भीतर
- दुश्मन
- दोष
निम्नलिखित अनेक शब्दों के लिए एक शब्द लिखिए।
Question 1.
जिसमें बल न हो
Answer:
दुर्बल
कृति आ (३): स्वमत अभिव्यक्ति
Question 1.
‘गुरु हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। विषय पर अपने विचार लिखिए।
Answer:
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में गुरु का महत्त्व अनन्यसाधारण होता है। गुरु बिना गति नहीं अर्थात गुरु के बिना छात्र प्रगति नहीं कर सकता; वह ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। गुरु हमारे दुर्गुणों को हटाकर सद्गुणों का संवर्धन करता है। संतकवि कबीर जी ने कहा है कि गुरु के बिना व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिल सकता है। हमारे सभी धर्मग्रंथों में गुरु की महिमा का गुणगान किया गया है।
जिसे जीवन में गुरु का साथ मिलता है, वह व्यक्ति अपने जीवन में भवसागर पार कर जाता है। जिस प्रकार सूर्य के निकलने से अंधकार का नाश हो जाता है; ठीक उसी प्रकार गुरु के मुख से निकले वचनों से मोहरूपी अंधकार का नाश हो जाता है। गुरु अज्ञान का निराकरण करता है और हमें सच्चाई का मार्ग दिखाता है।
निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति इ (१): आकलन कृति
निम्नलिखित शब्द पढ़कर ऐसे दो प्रश्न तैयार कीजिए जिनके उत्तर निम्न शब्द हों
Question 1.
ईश्वर
Answer:
संत कबीर को किसकी महिमा सब जगह दिखाई देती है?
Question 2.
कस्तूरी
Answer:
हिरण की नाभि में क्या होती है?
समझकर लिखिए।
Question 1.
Answer:
कृति इ (२):शब्द संपदा
Question 1.
पद्यांश में से देशज शब्द ढूँढ़कर लिखिए।
Answer:
नैन
पीव
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए।
- मृग
- दुनिया
- घट
- नैन
Answer:
- हिरण
- संसार
- घड़ा
- नयन
निम्नलिखित शब्द के अनेकार्थी शब्द लिखिए।
- मृग –
- कुंडल –
Answer:
- मृग – हिरण, एक नक्षत्र का नाम
- कुंडल – नाभि, कड़ा, बाली
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ दोहों से ढूंढकर लिखिए।
- परमात्मा
- संसार
- खुद
- पुत्र
Answer:
- पीव
- दुनिया
- मैं
- लाल
कृति इ (३) : स्वमत अभिव्यक्ति
Question 1.
‘ईश्वर सर्वव्यापक है।’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
Answer:
ईश्वर ने ही इस सुंदर सृष्टि का निर्माण किया है। उसकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता है। संपूर्ण सृष्टि में ईश्वर का अस्तित्व है। वह हमारे हृदय में विराजमान है। लेकिन हमें इस बात का एहसास नहीं होता। अत: हम उसे ढूँढ़ने के लिए चारों और भटकते रहते हैं। अलग-अलग तीर्थस्थलों पर जाकर उसे पाने का प्रयास करते हैं। कोई उसे मंदिर मैं ढूँढ़ता है तो कोई उसे मस्जिद में ढूँढ़ता है।
परंतु वह तो हर जगह है। उसे पाने के लिए हमें यहाँ-वहाँ भटकने की जरूरत नहीं है। ईश्वर को पाने के लिए मनुष्य को बाह्य-आडंबरों का त्याग करना चाहिए। कर्मकांड व बाहरी आडंबर के जरिए हमें उसकी प्राप्ति नहीं होती है। सच्चे भाव से ईश्वर को याद करने पर वह हमारे साथ होते हैं। इसके लिए हमें यहाँ-वहाँ जाने की जरूरत नहीं है।
निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति ई (१) आकलन कृति
पद्यांश के आधार पर समझकर निम्नलिखित वाक्य पूर्ण कीजिए।
Question 1.
किनारे पर वही बैठा रहता है –
Answer:
जो डूबने से डरता है।
Question 2.
पानी की गहराई में उतरने से –
Answer:
व्यक्ति को अनमोल रत्न की प्राप्ति होती है।
निम्नलिखित शब्द पढ़कर ऐसे दो प्रश्न तैयार कीजिए जिनके उत्तर निम्न शब्द हों –
Question 1.
बौरा
Answer:
डूबने से कौन डरता है?
Question 2.
फूल
Answer:
जो हमारे जीवन में काँटा बोता है, उसके जीवन में हमें क्या बोना चाहिए?
समझकर लिखिए।
Question 1.
Answer:
कृति ई (२) : शब्द संपदा
निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए।
- फूल
- किनारा
- काँटा
- पानी
Answer:
- सुमन
- तट
- कंटक
- जल
विलोम शब्द लिखिए।
- फूल x ……….
- ढूँढना x ………
Answer:
- फूल x काँटा
- ढूँढना x पाना
वचन बदलिए।
- किनारा
- फूल
Answer:
- किनारा – किनारे
- फूल – फूल
निम्नलिखित अनेक शब्दों के लिए एक शब्द लिखिए।
Question 1.
तीन नोकों वाला अस्त्र
Answer:
त्रिशूल
कृति ई (३) : स्वमत अभिव्यक्ति
Question 1.
‘साहस व्यक्ति का सबसे बड़ा गुण होता है’ विषय पर अपने विचार लिखिए।
Answer:
साहस ही जीवन है। साहस ही हमें जीवन में सफलता के लक्ष्य तक पहुंचाता है। जिस व्यक्ति के पास साहस होता है वह व्यक्ति दूसरों से अलग होता है और वह अद्भुत कार्य कर दिखाता है। साहस के कारण जीवन में उत्साह का संचार होता है और व्यक्ति का जीवन जीने योग्य बनता है। साहस मनुष्य-जीवन को सोने जैसा चमकाता है और उसे उन्नति की ओर आगे बढ़ाता है।
जीवन की उन्नति, प्रगति और उच्चतम विकास के लिए साहस बहुत ही आवश्यक है। साहस के बल पर ही कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष में जा सकीं। साहस के बल पर ही कोलंबस ने अमेरीका की खोज की। साहस के बल पर ही सिकंदर ने पूरी दुनिया पर अपना वर्चस्व स्थापित किया था। इसी साहस के बल पर हम भारतीयों ने अंग्रेजों का सामना करके उन्हें वापस जाने के लिए मजबूर किया था। इसलिए साहस सबसे बड़ा गुण है।
जिन ढूँढ़ा Summary in Hindi
जिन ढूँढ़ा कवि – परिचय
जीवन-परिचय : संत कबीरदास जी का जन्म सन १३९८ उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में हुआ। ये भक्तिकालीन निर्गुण काव्यधारा के संतकवि थे। इनकी भाषा सधुक्कड़ी है। हिंदी भाषा की बोलियों का उल्लेख और प्रयोग इनकी रचनाओं में झलकता है। इनकी रचनाओं में धार्मिक आडंबर और सामाजिक रूढ़ियों के प्रति विद्रोह दिखाई देता है। ये समाज में जागरण युग के अग्रदूत के रूप में जाने जाते हैं।
प्रमुख कृतियाँ : ‘साखी’, ‘सबद’, ‘रमैनी’, इन तीनों का संग्रह ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में किया गया है।
जिन ढूँढ़ा पद्य-परिचय
दोहे : दोहा एक अर्धसममात्रिक छंद है। इसमें प्रथम और तृतीय चरण में १३-१३ तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं। चरण के अंत में लघु होता है।
प्रस्तावना : ‘जिन ढूँढा’ इस दोहे में संतकवि जी ने बड़प्पन का लाभ, गुरु और शिष्य की मनोवृत्ति, संगति का फल, अच्छा व्यवहार, परोपकार, साहस, सहानुभूति, जीव व आत्मा-परमात्मा के बारे में अपने विचार व्यक्त किए हैं। संत कबीर के इन नीतिपरक दोहों से जीवन जीने की कला और जीवन को समृद्ध करने की सीख मिलती है।
जिन ढूँढ़ा सारांश:
संतकवि कबीर जी ने अपने नीतिपरक दोहों के माध्यम से मनुष्य को जीवन समृद्ध करने की सीख दी है। कबीर कहते हैं कि व्यक्ति को सिर्फ बड़ा नहीं होना चाहिए। उसके बड़े होने से दूसरों को लाभ पहुंचाने की क्षमता व्यक्ति के पास होनी चाहिए। गुरु-शिष्य का आपसी रिश्ता पवित्र होना चाहिए। शिष्य के पास गुरु पर सर्वस्व अर्पण करने की भावना होनी चाहिए। गुरु के पास भी शिष्य से कुछ भी न लेने की मनोवृत्ति होनी चाहिए।
मनुष्य को सज्जनों की संगति में रहना चाहिए। सज्जनों की संगति से व्यक्ति को अपने चरित्र में सुधार कर लेना चाहिए। दुर्बल या कमजोर व्यक्ति को नहीं सताना चाहिए। उनकी हाय कभी नहीं लेनी चाहिए। बलवान व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह दुर्बल व्यक्ति की सुरक्षा करें। एक गुरु ही शिष्य के जीवन को आकार देने का कार्य करता है। वही उसका भाग्यविधाता होता है। जिस पर सर्वशक्तिमान ईश्वर की कृपा होती है, उसे कोई भी नहीं मार सकता है। हमें ईश्वर को अपने नयनों में बंद करके रखना चाहिए; ताकि हम उसे सदैव देख सकें। ईश्वर की अद्भुत महिमा हर जगह दिखाई देती है।
अत: व्यक्ति को ईश्वर के साथ एकाकार होना चाहिए। साहस के द्वारा व्यक्ति बड़े से बड़ा कार्य कर सकता है । हमें जीवन में दूसरों का हित ही करना चाहिए। संत कबीर के इन नीतिपरक दोहों को अपने जीवन में उतारने और उसका पालन करने से हम जीवन में सफलता हासिल कर सकते हैं।
जिन ढूँढ़ा शब्दार्थ
जिन ढूँढ़ा भावार्थ
बड़ा हुआ तो …………………………. लागें अति दूर।।
कबीरदास जी कहते हैं कि केवल शरीर से बड़ा होना पर्याप्त नहीं होता है। अपने बड़प्पन से दूसरों को लाभ पहुँचाने की क्षमता व्यक्ति के पास होनी चाहिए। खजूर का पेड़ बहुत ऊँचा होता है परंतु राह से आने-जाने वाले राहियों को उसके छाया का लाभ नहीं मिलता है और फल अधिक दूर लगने के कारण राहगीर उसके फलों का आस्वाद भी नहीं ले सकते हैं। यदि व्यक्ति के बड़े होने से दूसरे लोगों का भला हो सकता है, तो ही व्यक्ति सचमुच का बड़ा होता है।
सिष को ऐसा …………………………….. कुछ नहीं लेय।।
कबीरदास जी कहते हैं कि शिष्य का ऐसा स्वभाव होना चाहिए कि वह गुरु पर अपना सर्वस्व अर्पण कर दे। जैसा शिष्य हो वैसे गुरु को | भी होना चाहिए। गुरु भी ऐसे स्वभाव वाला होना चाहिए कि वह शिष्य से कुछ भी न लेने की इच्छा रखता हो।
कबिरा संगत …………………………….. बास सुबास।।
कबीरदास जी कहते हैं कि सज्जन व्यक्ति की संगति इन बेचने वाले की सुगंध की तरह महकती है। इन बेचने वाला व्यक्ति हमें कुछ दे । । या न दे, फिर भी उसके पास रहने से सुगंध मिलती ही है।
दुर्बल को न सताइए …………………………….. भसम हवै जाय।
कबीरदास जी कहते हैं कि दुर्बल या कमजोर व्यक्ति को नहीं सताना चाहिए। उनकी हाय या उनके मुख से निकली बटुआ बड़ी प्रभावशाली व असरदार होती है। जिस प्रकार लुहार के पास जो धौंकनी होती है, वह निर्जीव होती है; पर जब उससे हवा निकलती है तब उस हवारूपी श्वास से लोहा भी भस्म हो जाता है।
गुरु कुम्हार सिष …………………………….. बाहर बाहै चोट।।
कबीरदास जी ने यहाँ गुरु को कुम्हार की संज्ञा दी है और शिष्य को कच्चे घड़े की। जिस प्रकार कुम्हार घड़े को सुंदर बनाने के लिए । भीतर से एक हाथ से सहारा देता है और बाहर दूसरे हाथ से थपथपाकर उसे सही आकार देता है, ठीक उसी प्रकार गुरु भी शिष्य को अंतर (हृदय) से प्रेम भावना तथा बाहर से कठोर अनुशासन में रखकर योग्य बनाता है।
जाको राखै …………………………….. जग बैरी होय।।
कबीरदास जी कहते हैं कि जिस पर सर्वशक्तिमान ईश्वर की कृपा होती है, उसे कोई भी नहीं मार सकता है। भले ही पूरी दुनिया उसका बैरी अर्थात दुश्मन हो जाए तो भी उसका बाल बाँका नहीं हो सकता।
नैनों अंतर आव …………………………….. तोहि देखन देवें।।
कबीरदास जी कहते हैं कि हे सर्वशक्तिमान ईश्वर ! तू मेरे नयनों में आकर बस जा और मैं तुझे अपने नयनों में बंद कर लूँ। ऐसा करके । न मैं किसी और को देखूगा और न तुझे किसी और को देखने दूंगा।
लाली मेरे लाल …………………………….. हो गई लाल।।
कबीरदास जी ने इस दोहे में ईश्वर को लाल कहा है और उसकी महिमा को लाली कहकर संबोधित किया है। वे कहते हैं, “मुझे मेरे । ईश्वर की अद्भुत महिमा हर जगह दिखाई देती है। जब मैं उस अद्भुत महिमा को देखने गया तब मैं भी उसमें विलीन हो गया।”
कस्तूरी कुंडल …………………………….. जानै नाहिं।।
कबीरदास जी कहते हैं कि ईश्वर सर्वव्यापक है। वह हमारे हृदय में भी स्थित है। जिस प्रकार कस्तूरी हिरण की नाभि में होती है, परंतु उसे इस बात का पता नहीं होता और वह उसकी सुगंध से मस्त होकर पूरे वन में उसे खोजता फिरता है। उसी प्रकार ईश्वर भी हमारे हृदय में ही वास करते हैं पर हमें इस बात का ज्ञान नहीं होता है और हम उसे ढूँढ़ने के लिए चारों ओर घूमते-भटकते रहते हैं।
जिन ढूँढा …………………………….. रहा किनारे बैठ।।
कबीरदास जी कहते हैं कि जीवन में साहस का होना अत्यावश्यक है। यदि व्यक्ति के पास अनमोल रल पाने की चाह है, तो उसे पानी । की गहराई में उतरना ही पड़ेगा। यदि उस बावले को डुबने का डर है तो वह किनारे ही बैठा रह जाएगा है। ऐसा व्यक्ति जीवन में कुछ भी नहीं कर पाएगा।
जो तोको …………………………….. बाको है तिरसूल।।
कबीरदास जी कहते हैं कि हमें जीवन में दूसरों का हित ही करना चाहिए। भले ही दूसरा व्यक्ति तुम्हारी राहों में काँटा बोए; फिर भी तुम्हें उसके लिए फूल ही बोने चाहिए। तुम्हारे बोए फूल से तुम्हारा आँगन तो महक उठेगा पर उस व्यक्ति को काँटों के बदले त्रिशूल का कष्ट । मिलेगा, जिससे उसका जीवन यातनाओं से भर जाएगा।